Shri Bappa Raval Shrankhla - Khand 2 in Hindi Biography by The Bappa Rawal books and stories PDF | श्री बप्पा रावल श्रृंखला - खण्ड-दो

Featured Books
Categories
Share

श्री बप्पा रावल श्रृंखला - खण्ड-दो

पूर्व कथा 
कालभोजादित्य रावल 
(श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड एक) 

कहानी शुरू होती है मेवाड़ के एक नगर नागदा से जहाँ भीलों के एक कबीले को घेरकर गुहिलवंशी शिवादित्य भीलों के सरदार भीलराज बलेऊ को द्वन्द की चुनौती देता है। वो बलेऊ को हराकर उसे मारने वाला ही होता है, कि सोलह वर्ष का बालक कालभोज अपने धर्मपिता की रक्षा करने आ जाता है और शिवादित्य को द्वन्द में पराजित कर देता है। तब कालभोज को पता चलता है कि शिवादित्य कोई और नहीं उसके स्वर्गीय पिता नागादित्य के बड़े भाई हैं, जो अपने भाई के हत्यारे भीलराज बलेऊ से बदला लेने के लिए यहाँ आये हैं। 

अपने धर्मपिता पर ही अपने पिता की हत्या का आरोप लगता देख कालभोज भीलराज पर प्रश्नों की बौछार कर देता है। पर महाऋषि हरित को दिए वचन के कारण भीलराज चुप रहते हैं। तभी खबर मिलती है कि कालभोज की पालक माता तारा को सांप ने काट लिया है। मौत के करीब आई तारा शिवादित्य को अपने सामने देखकर सबकुछ समझ जाती है। वो मरते मरते कालभोज से ये वचन ले ले लेती कि वो किसी भी सूरत में भीलराज के ऊपर शस्त्र नहीं उठाएगा ना ही उन पर किसी भी तरह का दबाव डालेगा। तो यहाँ कालभोज के बहुत से सवाल अनसुलझे ही रह जाते हैं और तारा मर जाती है। अपने गुरु महाऋषि हरित के आदेश पर कालभोज सिंध में अरबों के खिलाफ होने वाली जंग में हिन्दसेना की तरफ से शामिल होता है। उस युद्ध में सिन्धुराज राजा दाहिर के अलावा, मेवाड़ नरेश (कालभोज का मामा) मानमोरी और कन्नौजराज नागभट्ट भी शामिल होते हैं। कालभोज अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन करके सिंध को विजय दिलाता है, पर फिर भी वो खुश नहीं होता क्योंकि विजय के आखिरी दांव के लिए उसे भीलराज बलेऊ की मदद लेनी पड़ती है। 

वहीं कालभोज के पराक्रम को देख सिन्धुराज दाहिर और कन्नौज राज नागभट्ट बहुत प्रसन्न होते हैं, वहीं कालभोज का मामा मेवाड़ का राजा मानमोरी उसकी ख्याति और प्रशंसा देख जलभुन उठता है। पर जनमानस के दबाव में वो कालभोज को मेवाड़ का सेनापति बना देता है। राजा दाहिर अरबी हाकिम अल्लाउद्दीन बुठेल के जरिये बगदाद के सुलतान अलहजाज को ये सन्देश भेजते हैं कि वो सिंध से अपने सारे फौजी खेमे तीन महीने के अंदर हटा ले वर्ना हिन्द की संगठित सेना बगदाद पर चढ़ आयेगी। 

वहीं दाहिर की पुत्री कमलदेवी कालभोज पर आसक्त हो जाती है और अपने भाई राजा दाहिर के छोटे पुत्र वेदांत से कहती है कि वो राजा दाहिर को इस वैवाहिक सम्बन्ध के लिए मनाये। इधर सिंध के ब्राह्मणाबाद के महल में सारे राजा और कालभोज खाने पर बैठते हैं। उसी दौरान ये प्रस्ताव रखा जाता है कि चालुक्यों को भी हिन्दसेना का भाग बनाया जाए, पर मानमोरी पुरानी दुश्मनी के कारण इससे इंकार कर देता है और कहता है कि अगर ऐसा हुआ तो वो हिन्दसेना से दूरी बना लेगा। इसके बाद, राजा दाहिर का पुत्र वेदांत कालभोज को एक ख़ुफ़िया गुफा में ले जाता है और सिन्धी गुप्तचर दलों से उसका परिचय करवाता है। वेदांत कहता है कि उसे मानमोरी पे भरोसा नहीं है और अगर कभी उसने हिन्दसेना का साथ छोड़ दिया, तो सिंध अरबों से हार सकता है, ऐसे में वो चाहता है कि इस गुप्तचर दल को रावल ही संभाले। 

इसके बाद कालभोज नागदा वापस लौटता है, वहाँ हम उसके बचपन के दोस्तों मेवाड़ के युवराज सुबर्मन और भीलराज बलेऊ के पुत्र देवा से मिलते हैं। वहीं दूसरी ओर, सिंध से पराजित होने और राजा दाहिर का धमकी भरा पैगाम मिलने के बाद, बगदाद का सुलतान अल हजाज और इराक का खलीफा अल वालिद बिन अब्दुल मलिक सिंध को जीतने के लिए सत्रह साल के हाकिम मुहम्मद बिन कासिम को चुनते हैं। खलीफा कासिम को ये भी हुक्म देते हैं कि उसे राजा दाहिर की तीनों बेटियां सूर्य, कमल और प्रीमल अपने हरम में चाहिए। इसी दौरान कासिम एक सिन्धी जासूस को पकड़ लेता है पर वो ये देख हैरान रह जाता है कि कैसे वो सिन्धी जासूस कासिम को अपने ही सिपाही पर इतना उकसा देता है कि वो उसी पे हमला कर दे। उस जासूस को मारने के बाद, कासिम सुलतान अलहजाज को इस बात के लिए मना लेता है कि वो राजा दाहिर की बात मानकर सिंध से अपनी सैनिक चौकियां हटा लें, इस वादे पर कि वो पांच साल के अंदर सिंध को जीत लेगा। उसके बाद कासिम पन्द्रह हजार अरबी योद्धाओं को तैयार करके उन्हें दो दो सौ के दल में बांटता है, और उन्हें आदेश देता है कि तुम व्यापारी बनकर हिन्द की भूमि के अलग अलग हिस्सों में जाओ और वहाँ की संस्कृति में खुद को ढालकर उनमें घुलमिल जाओ। और फिर कुछ सालों बाद, सबके सब सिंध में अलग अलग ओहदे पर तैनात हो जायेंगे, कहीं लोहार, कहीं व्यापारी, कहीं सैनिक बनकर, जिसमें उनकी मदद करेगा सिंध के नगर देबल का किलेदार ज्ञानबुद्ध। जो अरबियों से ही मिला हुआ है पर दुनिया को लगता है वो राजा दाहिर का वफादार है। 

पांच साल बाद, राजकुमारी कमलदेवी अपनी बहनों प्रीमल, सूर्य और भाई वेदान्त के साथ कालभोज की शिवभक्ति की परीक्षा लेने नागदा आती है। वहाँ मेवाड़ के युवराज सुबर्मन और प्रीमल एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं। वहीं शिवरात्रि के भव्य अवसर पर कालभोज कमल की परीक्षा में सफल होकर उसका ह्रदय जीत लेता है। पर उसी रात, नागदा में अतिथि रूप में आया मानमोरी कमल को एक साधारण कन्या समझ उस पर आसक्त हो जाता है। भोर से ठीक पहले, मानमोरी कमल को अकेला पाकर उसका हरण करने का प्रयास करता है। भीलराज बलेऊ कमल की रक्षा को मानमोरी से लड़ जाते हैं। मानमोरी की नीचता के बारे में जान कालभोज मानमोरी को हराकर बलेऊ की रक्षा करता है। 

पर उसका बचपन का दोस्त सुबर्मन अपने पिता मानमोरी की रक्षा को आगे आ जाता है और उसे वचन देता है कि यदि वो मानमोरी की जान बख्श दे तो वो लोग नागदा में कभी कदम नहीं रखेंगे। जाने से पहले, मानमोरी कालभोज को मेवाड़ के सेनापति पद से निष्काषित कर देता है और उसके पिता नागादित्य के बारे में बहुत कटु वचन कहकर उसे उसी के समान विद्रोही कहता है। सुबर्मन का सम्मान रखने के लिए, कालभोज मानमोरी को वहाँ से जाने देता है। मानमोरी का पक्ष लेने के कारण, प्रीमल सुबर्मन से सारे सम्बन्ध तोड़ लेती है। भारी मन से सुबर्मन अपने मित्र कालभोज और देवा से विदाई लेता है।

फिर कालभोज भीलराज से कहता है कि अपने पिता के लिए जो नफरत उसने मानमोरी की आँखों में देखी वो भीलराज की आँखों में कभी नहीं थी, उनकी आँखों में केवल ग्लानी थी। इसलिए अब चाहें वो नागादित्य का सत्य बताये या ना बतायें, वो दोबारा कभी उनसे ये सवाल नहीं करेगा, और वो चाहेगा कि उन दोनों का सम्बन्ध वैसा ही हो जाये जैसा पांच साल पहले था। ऐसा करके वो हरित ऋषि की परीक्षा में सफल हो जाता है। उसके बाद, बलेऊ और हरित ऋषि विषयंत नाम के एक बूढ़े कैदी को कालभोज के सामने लाते हैं, और हरित ऋषि बताते हैं कि भीलराज को उन्होंने विवश किया था कि वो नागादित्य का सत्य कालभोज को ना बतायें। वो चाहते थे कि कालभोज बिना सत्य जाने बलेऊ के चरित्र को परखकर उसे क्षमा करे। ऐसा करके वो हिन्दसेना का सेनापति बनने के योग्य हो जायेगा, जो विषम से विषम परिस्थितियों में भी विचलित होकर, हर दृष्टिकोण से परिणाम का विचार किये बिना कोई भी निर्णय नहीं लेगा। 

[ फिर बलेऊ नागादित्य के जीवन की कथा सुनाता है। अब कहानी अतीत में जाती है। ]

गुफाओं में रह रहे चालुक्यराज विक्रमादित्य मेवाड़ के नागदा से जान बचाकर भागे शिवादित्य और नागादित्य नाम के दो गुहिलवंशी बालकों को शरण देते हैं। कुछ सालों बाद, यही दो बालक चालुक्यराज को महिष्कपुर की अपनी खोयी राजधानी बादामी को पल्लवों से वापस जीतने में मदद करते हैं। इसके बाद, चालुक्यराज विक्रमादित्य अपने बेटे विनयादित्य को नया चालुक्यराज घोषित करते हैं, इसी दौरान मेवाड़ का राजा मानमोरी चालुक्यनगरी बादामी पर हमला करता है। मानमोरी धोखे से चालुक्यराज को मारने की नाकाम कोशिश करता है, पर नागादित्य मेवाड़ की सेना के बीच में घुसकर मानमोरी को घसीटकर लाता है और चालुक्यराज के सामने झुका देता है। पर तब सूचना मिलती है कि सिंधुराज दाहिर ने अरबों के विरुद्ध युद्ध में मानमोरी से मदद मांगी है। मानमोरी को अपमानित कर उसे अभयदान दिया जाता है। 

अगले कुछ साल, शिवादित्य और नागादित्य महिष्कपुर के सारे नगरों को चालुक्यों के आधीन करने के अभियान पर निकलते हैं। आखिरी मुकाम पर भोजकश के युद्ध में नागादित्य का सामना मानमोरी की बहन मृणालिनी से होता है। पर उस युद्ध में कुछ ऐसा होता है कि दोनों एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं और विवाह का निर्णय लेते हैं। मानमोरी अपनी बहन की शादी का फायदा उठाता है। वो नागादित्य को उसके पूर्वजों की भूमि नागदा लौटाकर उसका भरोसा जीतने की कोशिश करता है। 

नागदा में नागादित्य भीलराज बलेऊ से मिलता है, जो सालों से मानमोरी के अत्याचारों से मजबूर होकर जंगलों में छिपकर रहते हैं। वहाँ वो सालों से भीलों की रक्षा कर रहे नागदा के सेनापति विषयंत से भी मिलता है जो पहले से नागदा के सिंहासन पर नजरें गड़ाए हुए है पर नागादित्य के वहाँ आने से उसके मंसूबों पर पानी फिर गया है। नागादित्य भीलों और मानमोरी में समझौता करवाता है, और नागादित्य का भरोसा जीतने के लिए मानमोरी इस समझौते के लिए मान जाता है। इसके बाद मानमोरी नागादित्य को मेवाड़ के नगरों में उठ रहे विद्रोह को दबाने के लिए भेजता है, पर उन विद्रोहियों को मारने की जगह नागादित्य उनके विद्रोह की वजह को समझता है और मानमोरी से उनका समझौता करवाता है, इससे नागादित्य पूरे मेवाड़ में काफी मशहूर हो जाता है। मानमोरी चालुक्यों के खिलाफ नागादित्य को हथियार बनाना चाहता है इसलिए उसकी सारी बात मानता चला जाता है। इसी दौरान रानी मृणालिनी कालभोज को जन्म देती है। वहीं भीलराज और नागादित्य में बढती दोस्ती से विषयंत दरकिनार सा हो जाता है, और किसी भी तरीके से नागदा का सिंहासन पाना चाहता है। 

मानमोरी नागादित्य का भरोसा जीतने के लिए तीन साल तक उसके किये हर समझौते का मान रखता है। तीन सालों बाद, चालुक्यों को जीतने के लिए मानमोरी एक बड़ी साजिश करता है, वो चालुक्यराज विनयादित्य के बड़े बेटे जयसिम्हा को मरवाकर उसका इल्जाम शिवादित्य पर लगवा देता है। शिवादित्य को चालुक्यनगरी से निष्काषित कर दिया जाता है, और वो नागदा की ओर चल पड़ता है। रास्ते में मानमोरी उसे भी मरवाने की साजिश करता है, पर शिवादित्य बच निकलता है और नागादित्य को मानमोरी की साजिश का सारा सच बता देता है। गुस्से में नागादित्य नागदा को स्वतंत्र राज्य घोषित कर नागदा में मेहमान बनकर आये मानमोरी को बहुत अपमानित करता है, पर अतिथि होने के कारण उसे चित्तौड़ लौटने देता है। 

नागदा का सेनापति विषयंत मानमोरी से मिलकर उसे बताता है कि चालुक्यराज अपने बेटे जयसिम्हा की मौत का बदला लेने के लिए नागादित्य के साथ मिलकर चित्तौड़ पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। मेवाड़ में नागादित्य की ख्याति देख मानमोरी भी डर जाता है कि कहीं चित्तौड़ की सत्ता भी उसके हाथ से चली ना जाये। वो विषयंत के साथ मिलकर अमरनाथ की यात्रा से लौटते नागादित्य को मारने की योजना बनाता है, पर इस बार मानमोरी खुद को बदनाम नहीं करना चाहता, इसलिए विषयंत की माँ को अपने पास रख लेता है, ताकि अगर विषयंत पकड़ा जाए तो मानमोरी का नाम नाम न ले। नागादित्य के तीर्थयात्र से लौटने से ठीक पहले, विषयंत कुछ हत्यारों को भेजकर भीलराज बलेऊ की पत्नी और बेटी को मरवा देता है और कुछ ऐसा जाल रचता है जिससे भीलराज को भरोसा हो जाये कि ये सब नागादित्य के इशारे पे हुआ है। भीलराज अपनी सुधबुध खो देता है, और विषयंत भीलों को उकसाकर भेष बदलकर तीर्थयात्रा से लौटते नागादित्य के कारवाँ पर हमला करता है। नागादित्य अपने परिवार के साथ वहाँ से निकलने में कामयाब होता है और मदद के लिए अपने परिवार की चिता के पास बैठे भीलराज के पास पहुँचता है। नागादित्य को अपने सामने देख भीलराज गुस्से से पागल हो जाता है और तलवार उसकी पीठ में उतार देता है। मृणालिनी नागादित्य को लेकर भागने की कोशिश करती है पर नागादित्य पर चलाये विषयंत के तीरों का शिकार हो जाती है। इस लड़ाई के दौरान विषयंत की एक भूल से उसका खुद का आठ साल का बेटा भी मारा जाता है। नागादित्य के मरते मरते ग्लानी में आकर मानमोरी का नाम लिए बिना विषयंत भीलराज को सारी सच्चाई बता देता है। तब तक तारा तीन साल के कालभोज को लेकर वहाँ से निकल भागती है। 

नागदा से भागकर तारा भांडेर पहुँचती है, जहाँ कालभोज की शिक्षा शुरू होती है। मेवाड़ के लोगों का दिल जीतने के लिए, मानमोरी अपने बेटे सुबर्मन को भी कालभोज के साथ शिक्षा ग्रहण करने भेज देता है और ये घोषित करता है कि बड़ा होकर अपनी काबिलियत साबित करने पर कालभोज ही नागदा का राजा होगा। चार साल बीतते हैं। भांडेर में शिक्षा लेते हुए कालभोज और सुबर्मन बहुत गहरे दोस्त बन जाते हैं। फिर एक शिवभक्त गाय के चलते हरित ऋषि और कालभोज की मुलाक़ात होती है। हरित ऋषि भोज से बहुत प्रभावित होते हैं, और भीलराज बलेऊ को भांडेर में लाकर तारा को नागादित्य की हत्या की साजिश का सारा सच बताकर उसे नागदा लौटने के लिए मनाते हैं। फिर कालभोज और सुबर्मन हरित ऋषि के साथ नागदा आते हैं और उनकी आगे की शिक्षा वहीं शुरू होती है। 

कहानी फिर से वर्तमान में आती है, जहाँ भीलराज ये जानकर हैरान है कि नागादित्य की हत्या की साजिश के पीछे मानमोरी का हाथ था। वो कालभोज को चित्तौड़ पर हमले के लिए उकसाता है। पर अपने गुरु की शिक्षा का मान रखने के लिए कालभोज अपने निजी प्रतिशोध के लिए युद्ध नहीं छेड़ता। नागदा में कमल और कालभोज द्वारा अपमानित होकर, मानमोरी अपने राज्य लौटकर राजा दाहिर को सन्देश भेजता है कि उसे कमलदेवी अपनी पत्नी की रूप में चाहिए वर्ना वो हिन्दसेना से संधि तोड़ देगा। पर कालभोज और कमल का रिश्ता पहले से तय था, तो दाहिर मना कर देते हैं। गुस्से में मानमोरी मेवाड़ की पूरी सेना सिंध से वापस बुला लेता है, और सिंध के जंगलों में अपने बहुत से योद्धाओं को तैनात कर देता है ताकि राजा दाहिर की भेजी हुयी मदद की कोई भी पुकार कन्नौज के राजा नागभट्ट या नागदा तक ना पहुँच सके। 

मेवाड़ की सेना जब हिन्दसेना से अलग हो जाती है, तो शिवादित्य चालुक्यराज विजयादित्य का प्रस्ताव लेकर कालभोज के पास आता है और उससे कहता है कि अगर वो पल्लवराज पर्मेश्वर्मन को बंदी बनाकर पल्लवों को कमजोर कर दे, तो चालुक्य देश महिष्कपुर पल्लवों के संकट से सुरक्षित हो जायेगा और अपनी आधी सेना को हिन्दसेना का भाग बनने के लिए भेज पायेगा। कालभोज इस प्रस्ताव को मानकर पल्लवों पर हमला करने* निकलता है। 

अब सिंध में गोया जाति के ब्राह्मणों ने एक भविष्यवाणी की थी कि जिस दिन देबल का महाविष्णु मंदिर टूटा, राजा दाहिर के चच वंश की सत्ता समाप्त होगी और इस्लामिक राज आरम्भ होगा। कासिम को इसके बारे में पता था तो उसने देबल के किलेदार ज्ञानबुद्ध की मदद से दो मोर्चों से उस मंदिर पर हमला करता है। वो एक मोर्चे पर शुज्जा नाम के हब्शी को फ़ौज लेकर भेजता है, जिसका रास्ता रोकते हैं नेरून के किलेदार काम्हा और सीसम के किलेदार बाजवा, जो मोखा और रासल जैसे जाट वीरों के साथ मिलकर उसे हरा देते हैं। वहीं कासिम दूसरे मोर्चे से भी मंदिर पर हमला करता है। 

सामने आती हार देखते हुए मोखा, रासल अपने दल बल को लेकर भाग जाते हैं। वहीं काम्हा बाजवा अंतिम सांस तक मंदिर की रक्षा करते हुए वीरगति पाते हैं। पर उन दोनों के पराक्रम और अरबी सेना में मचाई तबाही से आतंकित हुए अरब अगले कई हफ़्तों तक देबल से आगे नहीं बढ़ पाते। मंदिर के टूटने के बाद अरबी सेना बहुत सी गायों को काटकर पंडितों को अपमानित करते हैं, तब गोया जाति के ही एक ब्राह्मण भविष्यवाणी करते हैं कि कासिम को उसके अपने लोग ही मारेंगे। 

देबल का मंदिर टूटने के बाद, मकरान का बादशाह मोहम्मद हारून अपनी विशाल सेना लेकर कासिम की मदद को आता है। और भविष्यवाणी के डर से बहुत से सिन्धी सामंत अरब सेना को विजयी मानकर उन्हीं के साथ मिल जाते हैं। जब राजा दाहिर को पता चलता है तो वो मदद के लिए कन्नौज राज नागभट्ट को सन्देश भेजते हैं जिसका महीनों तक जवाब नहीं आता। 

जब राजा दाहिर को खबर मिलती है कि कासिम अलोर के रावड़ किले पर हमला करने वाला है, जो सिंध का शक्ति स्त्रोत है। तब वो ब्राह्मणाबाद से सेना लिये अलोर की रक्षा को निकलते हैं और रास्ते में ही कासिम की फ़ौज उन पर हमला कर देती है। जंग में बहुत से सिंधियों की तलवार टूटने लगती है पर सिंध के युवराज जयशाह की चालाकी से सिन्धी सेना उस मोर्चे को जीतकर अलोर के किले में घुसने में कामयाब हो जाती है। कासिम की सेना को पीछे हटना पड़ता है। 

इसी दौरान राजा दाहिर को पता चलता है कि उनके भेजे सहायता के सन्देश नागभट्ट तक पहुँचे ही नहीं क्योंकि मानमोरी ने बीच में बहुत सी अड़चने लगा दी हैं। कासिम आलोर के किले में मौजूद अपने जासूसों से संपर्क बनाता है और सिंधियों के अनाज के गोदाम जलवा देता है। कोई और चारा ना देख राजा दाहिर कासिम को संधि प्रस्ताव भेजते हैं, पर संधि के बदले कासिम राजा दाहिर की तीनों बेटियों, सूर्य, कमल और प्रीमल को मांग लेता है। क्रोधित सिन्धी अपनी सेना लेकर अरबों से भिड़ जाते हैं, और वेदांत एक छोटी सी टुकड़ी लेकर अलोर के गाँवों से अनाज का इंतजाम करता है। 

जंग कई और दिनों तक चलती है और कासिम अपनी उम्मीद खोने लगता है। पर तब तक सुलतान अल हजाज के भेजे हाकिम सलीम बिन जैदी, सेना और भोज का नया जत्था लेकर वहाँ पहुँचता है। जब जयशाह को पता चलता है कि सिंध की सेना कमजोर है और कम है, तो वो जीतने के लिए सीधा अरबी सेना के बीच में घुसकर कासिम को मारने की योजना बनाता है, पर उसकी योजना नाकाम हो जाती और कई अरबी हाकिम मिलकर जय को मार देते हैं। 

जब एक अरबी हब्शी शुज्जा जय के शव को अपमानित करता है, तो राजा दाहिर का शाही हाथी जो जय के बचपन का साथी रहा है वो गुस्से से पागल हो जाता है और शुज्जा को बुरी मौत मारता है। फिर जय के शोक में साक्या पागल होकर राजा दाहिर को रणभूमि से निकालकर सिन्धु नदी की ओर ले जाता है। दाहिर का ध्वज न दिखने से उनकी मौत की अफवाह फ़ैल जाती है और सिन्धी सेना बिखरकर हार जाती है।

 वहीं कुछ समय बाद साक्या अरबी घेरे को तोड़ते हुए रण में पहुँचता है पर तब तक सिन्धी सेना हार चुकी होती है। घायल साक्या भूमि पर बैठ जाता है। कासिम तीरों से बिंधे राजा दाहिर के पास आता है और उनका सर काट देता है। वेदान्त अपनी बहनों सूर्य, कमल और प्रीमल को लेकर अलोर से भागने की कोशिश करता है, पर प्रीमल और सूर्य उससे बिछड़ जाती हैं। वेदांत कमल को मेवाड़ की ओर ले जाता है पर रास्ते में कासिम और उसके लोग उसे घेर लेते हैं। कमल झरने में कूद जाती है और वेदांत वहाँ से भागने में कामयाब होता है। 

वहीं दो महीने के संघर्ष के बाद, कालभोज पल्लवराज पर्मेश्वर्मन को बंदी बनाकर चालुक्यराज विजयादित्य के सामने पेश करता है। तब वेदान्त कालभोज तक पहुँचकर सिंध की पराजय और मानमोरी की साजिश की पूरी कहानी सुनाता है। क्रोध में जलते कालभोज को अब चित्तौड़ पर हमला करने की वजह मिल जाती है, क्योंकि अब मानमोरी को दण्डित कर मेवाड़ की सेना को हिन्दसेना का भाग बनाना ही उसका मकसद होता है। 

कालभोज नागदा, कन्नौज और चालुक्यों की सेना लेकर चित्तौड़ पर चढ़ाई करता है। उसके पिता नागादित्य के वफादार रहे कई चित्तौड़ी सामंत भी उसके पक्ष में आ जाते हैं। मानमोरी की सेना की शक्ति नष्ट हो जाती है। तब मेवाड़ के सिंहासन के लिए कालभोज मानमोरी को द्वन्द की चुनौती देता है। पर मानमोरी की जगह द्वन्द के लिए उसका बेटा यानि कालभोज का बचपन का दोस्त सुबर्मन आता है। कालभोज निर्णय नहीं ले पाता और द्वन्द से पीछे हटकर कुछ समय मांगता है। 

फिर हरित ऋषि कालभोज को समझाते हैं कि मानमोरी ने सिंध के खिलाफ जो साजिश की उसके बारे में पूरे भारत को पता है और अगर उसे सजा दिए बिना अगर तुम सिंध की सहायता को गए तो सिन्धी तुम्हारा सम्मान नहीं करेंगे ना ही तुम्हें समर्थन देकर तुम्हें अपनायेंगे। 

तो आखिर में कालभोज और सुबर्मन में द्वन्द होता है, और पूरे एक दिन चलने वाली लड़ाई के बाद सुबर्मन वीरगति को प्राप्त होता है, और आखिरी सांस भरते हुए कालभोज को मेवाड़ का नया महाराणा घोषित करता है। अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में डूबे मानमोरी को बंदीगृह में डाल दिया जाता है। 

यहां से आगे की कथा प्रारंभ होती है...

To be continued..